दानिश रज़ा खान बुरहानपुर। बुरहानपुर की रहने वाली दीपिका सोनी आज हजारों महिलाओं के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। 1 जनवरी 1984 को एक सामान्य परिवार में जन्मी दीपिका की जिंदगी साधारण जरूर थी, लेकिन उनके हौसले हमेशा असाधारण रहे। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और माँ एक गृहिणी थीं। पिता के निधन के बाद परिवार आर्थिक तंगी में घिर गया। दीपिका ने हालातों से लड़ते हुए अपने भाई-बहनों के साथ घर संभाला और हिम्मत नहीं हारी।
साल 2007 में उनकी शादी अजय सोनी से हुई, जो खेती-बाड़ी करते थे। मगर दीपिका चाहती थीं कि उनके पति कुछ अलग करें, कुछ स्थिर और विकासमूलक। उन्होंने अजय को सुझाव दिया कि वे नौकरी की कोशिश करें। अजय ने उनकी बात मानी और बुढनपुर की शुगर फैक्ट्री में मुकादम की नौकरी पा ली। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।
दीपिका का सपना था कि वह पुलिस अफसर बनें, लेकिन शारीरिक दिक्कतों के चलते डॉक्टर ने उन्हें मना कर दिया। इसके बाद पति की नौकरी भी चली गई और घर की हालत फिर से बिगड़ गई। आर्थिक परेशानियों और मानसिक तनाव में आकर दीपिका ने आत्महत्या की कोशिश की, लेकिन उनकी बेटी खुशी ने समय रहते उन्हें बचा लिया। उस एक पल ने दीपिका की जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया।
2015 में दीपिका ने योगा ट्रेनर के रूप में एक स्कूल से अपने करियर की शुरुआत की। समाज ने ताने दिए – “एक औरत क्या कर लेगी?” मगर दीपिका ने आलोचनाओं की परवाह नहीं की। उन्होंने अपने सपनों की दिशा तय की और पीछे मुड़कर नहीं देखा। सबसे बड़ी चुनौती थी – अपने पति को विश्वास में लेना। दीपिका ने अपनी मेहनत से न केवल पति का विश्वास जीता, बल्कि पूरे समाज को अपनी मेहनत से चौंका दिया।
आज दीपिका "रुकना नहीं, झुकना नहीं और जहां झुकना पड़े, वह काम छोड़ देना चाहिए" – इस मूलमंत्र को जीती हैं। अब वह बुरहानपुर के बहादरपुर क्षेत्र में “नर्मदा गुरुकुल अकादमी” नामक स्कूल खोलने जा रही हैं। उनका सपना है – बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा और संस्कार देना, ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें।
दीपिका की यह कहानी उन तमाम महिलाओं को प्रेरणा देती है जो कठिनाइयों से घबराती हैं। दीपिका ने दिखा दिया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो कोई भी मुश्किल रास्ता मंजिल में बदल सकता है।